Inside Story: सीएम मनोहर लाल बदलेंगे विधानसभा सीट

Inside Story : करनाल के बजाए दूसरी विधानसभा से लड़ सकते हैं चुनाव!

हरियाणा में सियासी चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं और विभिन्न एजेंसियों द्वारा सर्वे करवाए जा रहे हैं। ऐसे में चर्चा यह भी चल रही है कि सीएम मनोहर लाल 2024 के विधानसभा चुनाव में करनाल के बजाए दूसरी सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा संघ एवं पार्टी हाईकमान के सामने रख चुके हैं। वहीं सीएम ऑफिस से जुड़े लोग भी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारियों में जुट गए हैं। (Inside Story)

मुख्यमंत्री मनोहर लाल (CM Manohar Lal) के राजनीतिक सलाहकार कृष्ण बेदी इस बार सिरसा लोकसभा चुनाव की टिकट के लिए हाथ पैर मार रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ जींद जिले की नरवाना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने वहां अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में शाहबाद विधानसभा सीट से कृष्ण बेदी जेजेपी के रामकरण काला से बुरी तरह चुनाव हारे थे। शाहबाद सीट पर वर्तमान समय में भी रामकरण काला की दावेदारी मजबूत बताई जा रही है और उनके कांग्रेस के संपर्क में होने की भी चर्चाएं हैं। (Inside Story)

सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) के ओएसडी जवाहर यादव बादशाहपुर विधानसभा सीट से चुनाव की तैयारियों में मशगूल हैं और उन्होंने बकायदा बादशाहपुर में अपनी हाजरी बढ़ा दी है, वहीं 2014 में पीडबल्यू मंत्री रहे राव नरबीर सिंह की 2019 के चुनाव में टिकट कट गई थी। ऐसे में सीएम के चहेते जवाहर की बढ़ती सक्रियता ने नरबीर को कांग्रेस के पाले में जाने के लिए ऑप्शन खोल दिए हैं। हालांकि सीएम मनोहर लाल ने 2014 से 2019 तक के कार्यकाल में राव नरबीर सिंह को राव इंद्रजीत के खिलाफ बखूबी इस्तेमाल किया था। बादशाहपुर में भले ही 2019 में बीजेपी के मनीष यादव को शिकस्त देकर आजाद राकेश दौलताबाद जीत गए थे, परंतु इस सीट पर राव इंद्रजीत भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ को चुनाव लड़ने के लिए उकसा रहे हैं। बताया जाता है कि उस चुनाव में राव इंद्रजीत ने राव नरबीर की टिकट कटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। (Inside Story)

सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) के राजनैतिक सलाहकार भारत भूषण भारती पिहोवा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। वैसे भी खेल मंत्री संदीप सिंह की खिलाड़ी कोच के साथ हुई छेड़खानी मामले में काफी मिट्टी पलीत हो चुकी है। जिसका फायदा भारत भूषण भारती को हो सकता है। सीएम मनोहर लाल के राजनीतिक सचिव अजय गौड फरीदाबाद विधानसभा सीट से तैयारी कर रहे हैं और सीएम मनोहर लाल के पीए अभिमन्यु सिंह कोसली विधानसभा सीट के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं। खैर सीएम ऑफिस में बैठने वाले चपरासी, रसोइयां, माली आदि के लेकर सभी का राजनीति में आने के सपने देखने का पूरा हक है और सत्ता के आसपास पावरफूल माने जाने वाले लोगों को गिड़गिड़ाते देख राजनीति करने का मन सभी का करता है। सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) के ओएसडी एवं सीएम विंडो की कमान संभालने वाले भूपेश्वर दयाल सोनीपत लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं और लोकसभा की टिकट न मिलने की स्थिति में राई विधानसभा पर भी फोकस किए हुए हैं। हालांकि सोनीपत लोकसभा से बीजेपी के रमेशचंद्र कौशिक सांसद हैं और राई विधानसभा से मोहन लाल कौशिक बडौली ने 2019 में जीत दर्ज की हुई है। ऐसे में लोकसभा एवं विधानसभा की टिकट को लेकर खींचतान बनती हुई साफ दिखाई दे रही है। सोनीपत लोकसभा सीट पर बीजेपी के रोहतक से सांसद अरविंद शर्मा पर नजर बनाए हुए हैं।

अब बात करते हैं Inside Story की, जिसमें सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) के करनाल विधानसभा सीट को छोड़ने की चर्चाएं हैं, दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव में भी सीएम मनोहर लाल गुरुग्राम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। परंतु 2014 में बने भाजपा के विधायक उमेश अग्रवाल ने सीट छोड़ने से मना कर दिया और टिकट कटने की सुरत में आजाद चुनाव लड़ने का चैलेंज सीएम को दे दिया। ऐसे में खार खाए हुए सीएम मनोहर लाल ने पहले विधायक की टिकट काटकर उनके ससुर सुधीर सिंघला को टिकट दिलवा दी, दूसरी तरफ पंजाबी समुदाय की ताकत को दिखाने के लिए अपने खास मित्र के बेटे मोहित ग्रोवर को आजाद चुनाव लड़वा दिया। उस चुनाव में उमेश अग्रवाल ने अपना पत्नी का नामाकंन करवा दिया था, परंतु बणिया समाज ने उन पर दवाब बनाकर उनका पर्चा उठवा दिया। दूसरी तरफ बताया जाता है कि सीएम की तरफ से मोहित ग्रोवर को सभी तरह की मदद दी गई थी।

सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) गुरुग्राम नगर निगम चुनाव को लेकर भी काफी जद्दोजहद कर रहे हैं, ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिल सके। गौरतलब है कि जून में फरीदाबाद, मानेसर एवं गुरुग्राम नगर निगम के चुनाव प्रस्तावित हैं।

डॉ. नवीन रमन के अनुसार- अगर सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) करनाल के बजाए गुरुग्राम से चुनाव लड़ते हैं तो वैश्य समाज में नराजगी आना स्वाभाविक है। ऐसे में वैश्य समाज को सीएम करनाल की सीट दे सकते हैं। वैसे वैश्य समाज गुरुग्राम सीट की दावेदारी सहज से छोड़ने को तैयार नहीं होगा, परंतु मनोहर लाल ने पूर्व विधायक जयप्रकाश गुप्ता को करनाल से टिकट दिलवाने का वायदा किया हुआ है, वहीं जयप्रकाश गुप्ता भी भाजपा एवं कांग्रेस दोनों से चुनाव लड़ने का मन बनाए हुए हैं। भाजपा से टिकट कटने की स्थिति में वो कांग्रेस से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि सीएम मनोहर लाल (CM Manohar Lal) का गुड़गांव सीट को लेकर यह भी दावा है कि उन्होंने लंबे समय तक गुड़गांव में काम किया है और उन्हें गली-गली का आइडिया है। जबकि हकीकत यह है कि करनाल लोकसभा के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर इस बार बीजेपी की हालत काफी खराब है। ऐसे में सीएम का करनाल सीट छोड़कर भागना स्वाभाविक है। दूसरी तरफ सीएम मनोहर लाल के सीट बदलने से विपक्षी दलों को फायदा भी मिल सकती है और यह नैरेटिव भी बन सकता है कि मनोहर लाल करनाल से हार रहे थे, इसीलिए वो करनाल छोड़कर भाग गए। भाजपा के लिए सीएम का गुरुग्राम से चुनाव लड़ना भारी पड़ सकता है। वैसे भी वर्तमान समय में भाजपा की हालत खराब है, ऐसे में यह निर्णय काफी भारी पड़ सकता है।

इस बार फिर से सीएम मनोहर लाल गुरूग्राम से चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर रहे हैं। क्या भाजपा हाईकमान उनकी इस इच्छा को पूरा करेगा या फिर इन्हें करनाल से ही चुनाव लड़ने के लिए बाध्य करेगा। वैसे भी इस बार करनाल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना सीएम मनोहर लाल के लिए उतना आसान नहीं रहने वाला है। ऐसे में सीएम मनोहर लाल गुरुग्राम जैसी सुरक्षित सीट की तलाश में हैं। दूसरी तरफ जब वो खुद गुरुग्राम से लड़ेंगे तो प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ को बादशाहपुर सीट से चुनाव लड़ने से कैसे रोक पाएंगे।

पार्टियां भले ही जाति से ऊपर उठकर राजनीति करने का दावा करती हों, परंतु जाति एवं धर्म टिकट निर्धारण में सबसे बड़ा कारक होता है। डॉ. नवीन रमन ने गुड़गांव विधानसभा सीट के जातिगत समीकरणों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि- गुड़गांव में कुल वोटों का जरनल वोट 61 प्रतिशत है और 26 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं तथा 13 प्रतिशत एससी वोटर हैं। जरनल में सबसे ज्यादा पंजाबी 26 प्रतिशत, दूसरे नंबर पर ब्राह्मण 13 प्रतिशत, जाट मतदाता 10 प्रतिशत एवं वैश्य मतदाता 8 प्रतिशत हैं। जातिगत समीकरणों के हिसाब से सीएम मनोहर लाल की पंजाबी प्रत्याशी के तौर पर दावेदारी मजबूत बनती है। वहीं ओबीसी में 9 प्रतिशत अहीरों (यादवों) की भागीदारी है तथा 15 प्रतिशत में बाकी अनेक जातियां हैं। एससी में हरिजनों की भागीदारी 5.5 प्रतिशत है और वाल्मीकि का प्रतिशत 3.5 है।