Haryana Congress can loose the battle
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में भले ही कांग्रेस दिख मजबूत स्थिति में रही थी पर परिणाम कांग्रेस के खिलाफ आए। उसका मूल कारण है पुराने ढर्रे पर चुनाव लड़ना और दूसरा पहले से रणनीति नहीं बनाना। जबकि भाजपा क्रिकेट की भाषा में कहें तो ऑस्ट्रेलिया की तरह अंतिम समय तक जीत के लिए लड़ती है जबकि कांग्रेस भारत की तरह एकदम दबाव में आ जाती है और उसके पास वैकल्पिक (अल्टरनेट) प्लान नहीं होते।
भाजपा जीत ने के लिए कई प्लान बनाती है और हर एंगल से रिसर्च करती है। जो उसे फायदा देने वाली होती रणनीति होती है उस पर अमल करती है।
हरियाणा में कांग्रेस किसके नेतृत्व में लड़ेगी चुनाव (Haryana Congress)
अब हरियाणा के मामले में कांग्रेस (Haryana Congress) अंतिम समय तक यह तय नहीं कर पायेगी कि इस बार विधानसभा का चुनाव पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व में लड़ना है या बिना सीएम फेस के लड़ना है। बिना सीएम फेस का मतलब है कि रणदीप एवं कुमारी सैलजा दोनों खुद को सीएम फेस के तौर पर आगे कर सकें।
इन दोनों रणनीतियों में से उसके लिए कौन-सी कारगर रहेगी, इसके लिए कांग्रेस कभी सर्वे एवं शोध का सहारा नहीं लेगी। बल्कि अंतिम समय में खासकर दबाव में किसी भी रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतर जाएगी।
टिकट वितरण में हर बार की तरह कर कांग्रेस चूक (Haryana Congress)
दूसरी सबसे बड़ी चूक कांग्रेस टिकट वितरण में करेगी। उसके पास कोई ऐसी फीडबैक एवं रणनीति नहीं होती, जिसके तहत वो जीत ने वाले प्रत्याशियों का चयन कर सके। दूसरी तरफ पार्टी हाईकमान पार्टी से ज्यादा लोकल नेताओं के दबाव में रहकर काम करती है, जिसका नुकसान यह होता है कि पार्टी मजबूत प्रत्याशी के बजाए लोकल नेता के दबाव में टिकट बांटती है। जिसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ता है।
कब बनेगा हरियाणा में कांग्रेस का संगठन (Haryana Congress)
तीसरा कांग्रेस के पास लंबे अर्से से हरियाणा में कोई संगठन नहीं है। जबकि बीजेपी ने पन्ना प्रमुख तक बनाए हुए हैं। बीजेपी के मजबूत संगठन का आखिरकार कांग्रेस कैसे सामना करेगी? कांग्रेस हाईकमान हरियाणा में संगठन बनवाने में क्यों नाकाम हो रहा है? संगठन की क्या ताकत होती है यह पता नजदीकी मुकाबलों में पता चलता है। बीजेपी ने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हारी हुई बाजी को संगठन के बलबूते ही जीत में बदल लिया।
कांग्रेस साध नहीं पा रही है अपने पारंपरिक वोटर को (Haryana Congress)
चौथा कांग्रेस अपने पारंपरिक ओबीसी वोटर को साधने में अभी भी पूरी तरह विफल क्यों है? दूसरा कांग्रेस शहरी सीटों पर लगातार सिमट रही है और ग्रामीण सीटों पर ही उसका विस्तार हुआ है। दरअसल कांग्रेस के नाम पर प्रदेश में वोट लगातर कम हुए हैं और हुड्डा के नाम पर ही बड़ी संख्या में वोट मिल रहे हैं। जिसका सीधा अर्थ है कि कांग्रेस की विचारधारा क्षीण हुई है और व्यक्ति विशेष पार्टी पर हावी हो गया है।
पांचवा कांग्रेस को आज के समय जाट, सिख, मुसलमान एवं चर्मकार समाज की बड़ी संख्या में वोट मिल रही हैं जबकि बाकी के समाज कांग्रेस से कट गए हैं। ऐसे में बीजेपी को हराने के सपना कांग्रेसी किस तरह देख रहे हैं।
केवल जनता के भरोसे सत्ता पाने की लालसा में बैठे हैं कांग्रेसी (Haryana Congress)
छठा ज्यादातर कांग्रेसी नेता इस उम्मीद में हैं कि जनता मनोहर लाल की नीतियों से परेशान होकर उन्हें घर बैठे सत्ता पर काबिज कर देगी, जबकि बीजेपी हाईकमान अगर अंतिम समय में सीएम फेस बदल देगा या कोई और रणनीति अपना लेगा तो कांग्रेस उस स्थिति में क्या करेगी?
लोकसभा और विधानसभा चुनाव हरियाणा में एक साथ हुए तो (Haryana Congress)
हैरत की बात है कि लोकसभा चुनाव में चंद महीने बचे हैं और अभी तक कांग्रेस (Haryana Congress) के पास ज्यादातर सीटों पर ठोस प्रत्याशी नहीं हैं। रोहतक में दीपेंद्र हुड्डा एकमात्र कन्फर्म प्रत्याशी हैं पर उनके भी चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेसी कार्यकर्ता खासकर हुड्डा गुट के कार्यकर्ता एवं नेता कन्फर्म नहीं हैं।
अरविंद शर्मा (बीजेपी) | 573,845 | 47.01% |
दीपेंद्र हुड्डा (कांग्रेस) | 5,66,342 | 46.4% |
जीत का अंतर | 7503 |
कुमारी सैलजा अभी तक यह तय नहीं कर पा रही हैं कि उन्हें सिरसा लोकसभा से लड़ना चाहिए या अम्बाला से।
सिरसा लोकसभा का 2019 का परिणाम
सुनीता दुग्गल (बीजेपी) | 714,351 | 52.16 |
अशोक तंवर (कांग्रेस) | 4,04,433 | 29.53 |
जीत का अंतर | 309918 |
अंबाला लोकसभा का परिणाम 2019
रतनलाल कटारिया (बीजेपी) | 746,508 | 56.72 |
कुमारी सैलजा (कांग्रेस) | 4,04,163 | 30.71 |
जीत का अंतर | 342345 |
कांग्रेस कुरुक्षेत्र लोकसभा से नवीन जिंदल को चुनाव लड़वाने को लेकर भी कन्फर्म नहीं है। हालांकि चर्चा नवीन जिंदल के बीजेपी से लड़ने की भी चल रही हैं।
नायब सिंह सैनी (बीजेपी) | 686,588 | 55.98 |
निर्मल सिंह (कांग्रेस) | 3,03,722 | 24.71 |
जीत का अंतर | 382866 |
भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा से श्रुति चौधरी पहले से चुनाव लड़ती आ रही हैं पर इस बार उनकी टिकट कटने की भी चर्चा है।
धर्मबीर सिंह (बीजेपी) | 736,699 | 63.45 |
श्रुति चौधरी (कांग्रेस) | 2,92,236 | 25.17 |
जीत का अंतर | 444463 |
सोनीपत लोकसभा एवं हिसार लोकसभा में कांग्रेस (Haryana Congress) के पास फिलहाल कोई दमदार प्रत्याशी नजर नहीं आ रहा है और न कोई नेता सक्रिय है।
रमेश चंद्र कौशिक (बीजेपी) | 587,664 | 52.03 |
भूपेंद्र हुड्डा (कांग्रेस) | 4,22,800 | 37.43 |
जीत का अंतर | 164864 |
बृजेंद्र सिंह (बीजेपी) | 603,289 | 51.13 |
दुष्यंत चौटाला (जेजेपी) | 2,89,221 | 24.51 |
भव्य बिश्नोई (कांग्रेस) | 1,84,369 | 15.63 |
जीत का अंतर | 314068 |
गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं करनाल में कांग्रेस (Haryana Congress) खुद को हारी हुई मानकर ज्यादा सीरियस नहीं लग रही है।
कांग्रेस हाईकमान एक रणनीति के तहत प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़वाने का मन बना रही है जिनमें कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, भूपेंद्र हुड्डा आदि सरीखे नेता हैं।
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अगर हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए तो कांग्रेस (Haryana Congress) की यह रणनीति आत्मघाती साबित होगी। अगर इस प्लान से अलग रणनीति भी अपनाती है तो कांग्रेस के लिए विधानसभा में बहुमत पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हालांकि कुछ आकलन यह कहते हैं कि एक साथ चुनाव होने से बीजेपी को विधानसभा के साथ लोकसभा में भी नुकसान होगा। पर 5 राज्यों के चुनाव परिणामों ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं एवं नेताओं में जोश भरने का काम किया है। जिसे देखते हुए मनोहर लाल एकदम से फ्रंट फुट पर आ गए हैं और पूरी कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है।
लोकसभा चुनाव में जैसे बीजेपी दीपेंद्र हुड्डा के खिलाफ दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारेगी वैसे ही हुड्डा परिवार पहले की तरह डर कर चुनाव लडेगा और उसके हारने की सम्भावनाएं बढ़ती चली जाएंगी।
बीजेपी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट जीत कर प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने का दांवा मजबूत कर लेगी। आज के दिन 5 राज्यों के चुनाव परिणाम ने बीजेपी कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को हौंसलों को उड़ान दे रखी है, वहीं कांग्रेसी कार्यकर्ताओं (Haryana Congress) का मनोबल टूटा हुआ नजर आ रहा है। कांग्रेस में शामिल हो सकने वाले नेताओं ने भी अपने योजना पर फिलहाल विराम लगा दिया है।