जानिए छोटूराम को क्यों मिली थी सर और राय बहादुर की उपाधि! (Chhotu Ram)

Chhotu Ram got the title of Sir and Rai Bahadur

अक्सर यह सवाल सभी के मन में उठता है कि छोटूराम (Chhoturam) को आखिर अंग्रेजों ने सर और राय बहादुर की उपाधि क्यों दी थी। इसके साथ उनके पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो जाती है। जिसके कारण छोटूराम और उनके समय का आकलन पीछे छूट जाता है और व्यक्ति अपनी विचारधारा एवं सोच के अनुकूल अपना फतवा जारी करने लगता है। आज हम उन सभी कारणों और परिस्थितियों का मूल्यांकन करने का प्रयास करेंगे। ताकि हमें इस सवाल का वाजिब एवं तटस्थ जवाब मिल सके।

रहबर-ए-आजम छोटूराम (Chhotu Ram) के जीवन से जुड़ी जानकारियां

छोटूराम का जन्म 24 नवंबर 1881 में हरियाणा के गढ़ी सांपला गांव (झज्जर जिले) में हुआ था। उस समय यह रोहतक जिले का हिस्सा था और रोहतक पंजाब में आता था। छोटूराम का वास्तविक नाम राम रिछपाल था। उनके पिता का नाम सुखी राम ओहलान (ओलहाण) व माता का नाम सिरिया देवी था। वे अपने भाइयों में वे सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के लोग उन्हें ‘छोटू’ कहकर पुकारते थे। दादा का नाम रामदास एवं परदादा का नाम रामरत्न था।
छोटूराम ने पहली जनवरी 1891 में स्कूली शिक्षा शुरू की, तब वो 9 साल के थे। प्रारंभिक शिक्षा के समय ही 11 साल की बाली उमर में उनका विवाह ज्ञानोदेवी से हुआ। ज्ञानोदेवी के पिता का नाम नान्हा सिंह गुलिया था, जो खेड़ीजट्ट के निवासी थे। चार साल तक सांपला के स्कूल में पढ़ाई की और वहां परीक्षा में जिले भर में पहले स्थान पर रहें। उसके बाद झज्जर के मिडिल स्कूल में दाखिला ले लिया। प्रथम आने के कारण उन्हें वजीफा भी मिलने लगा था। मिडिल परीक्षा में उन्हें पूरे प्रांत में दूसरा स्थान मिला।
क्रिश्चियन मिशन स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के विरुद्ध छोटूराम के जीवन की पहली विरोधात्मक हड़ताल थी। इस हड़ताल के संचालन को देखकर छोटूराम को स्कूल में ‘जनरल रॉबर्ट’ के नाम से पुकारा जाने लगा। 1903 में इंटरमीडियेट परीक्षा पास की। 1912 में जाट सभा का गठन किया 1914-15 में हुए प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया। 1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने। अगस्त, 1920 में छोटूराम ने कांग्रेस छोड़ दी थी, क्योंकि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन से सहमत नहीं थे।
यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया।1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली थी और वो विकास व राजस्व मंत्री बने।

किसान मसीहा की उपाधि क्यों मिली (Chhotu Ram)

पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस, 1934 और द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1936। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे।

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कर्जा माफी अधिनियम(1934) – यह क्रान्तिकारी ऐतिहासिक अधिनियम दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने 8 अप्रैल 1935 में किसान व मजदूर को सूदखोरों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए बनवाया। इस कानून के तहत अगर कर्जे का दुगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण-मुक्त समझा जाएगा। इस अधिनियम के तहत कर्जा माफी (रीकैन्सिलेशन) बोर्ड बनाए गए जिसमें एक चेयरमैन और दो सदस्य होते थे। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया गया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों की नीलामी नहीं की जाएगी।
साहूकार पंजीकरण एक्ट (1934) – यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इसके अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे पाएगा और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर पायेगा।
गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट (1938) – यह कानून 9 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ। इस अधिनियम के जरिए जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची हुई थी तथा 37 सालों से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापिस दिलवाई गईं। इस कानून के तहत केवल एक सादे कागज पर जिलाधीश को प्रार्थना-पत्र देना होता था। इस कानून में अगर मूलराशि का दोगुणा धन साहूकार प्राप्‍त कर चुका है तो किसान को जमीन का पूर्ण स्वामित्व दिये जाने का प्रावधान किया गया।
कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम(1938) – यह अधिनियम 5 मई 1939 से प्रभावी माना गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्किट कमेटियों का गठन किया गया। एक कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानों को अपनी फसल का मूल्य एक रुपये में से 60 पैसे ही मिल पाता था। अनेक कटौतियों का सामना किसानों को करना पड़ता था। आढ़त, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी और कितनी ही कटौतियां होती थीं। इस अधिनियम के तहत किसानों को उसकी फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना। आढ़तियों के शोषण से किसानों को निजात इसी अधिनियम ने दिलवाई।
व्यवसाय श्रमिक अधिनियम (1940) – यह अधिनियम 11 जून 1940 को लागू हुआ। बंधुआ मजदूरी पर रोक लगाए जाने वाले इस कानून ने मजदूरों को शोषण से निजात दिलाई। सप्‍ताह में 61 घंटे, एक दिन में 11 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकेगा। वर्ष भर में 14 छुट्टियां दी जाएंगी। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाएगी। दुकान व व्यवसायिक संस्थान रविवार को बंद रहेंगे। छोटी-छोटी गलतियों पर वेतन नहीं काटा जाएगा। जुर्माने की राशि श्रमिक कल्याण के लिए ही प्रयोग हो पाएगी। इन सबकी जांच एक श्रम निरीक्षक द्वारा समय-समय पर की जाया करेगी।
मोर के शिकार पर पाबंदी – गुड़गांव के अंग्रेज जिला कमिश्नर कर्नल इलियस्टर को मोरों का शिकार करने का बड़ा शौक था। चौधरी छोटूराम ने अपने लेखों के माध्यम से विरोध किया और कमिश्नर को माफी मांगनी पड़ी। उसके बाद मोर के शिकार पर पाबंदी लगी।
भाखड़ा बांध – सर छोटूराम ने ही भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखा था। सतलुज के पानी का अधिकार बिलासपुर के राजा का था। झज्जर के महान सपूत ने बिलासपुर के राजा के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

दरअसल छोटूराम की समस्त कार्यशैली में किसानों को लेकर एक खास किस्म की चिंता थी। इस चिंता में कुछ करने की लालसा थी, परंतु उग्रता नहीं थी। जिसके कारण वो किसानों के लिए कानून बनाने में कामयाब रहे। अपने समय की उग्र और लचीली विचारधाराओं से अलग अपनी विशिष्ट राह बनाकर दीनबंधु छोटूराम ने किसानों को उनके हकों एवं अधिकारों को कानूनी रूप दिया। इसीलिए दीनबंधु की उपाधि से उन्हें नवाजा गया।


दीनबंधु छोटूराम को क्यों मिली थी सर की उपाधि (Chhotu Ram)

सितंबर 1912 में छोटूराम रोहतक में आकर रहने लगे और अक्टूबर में इन्होंने वकालत रोहतक में वकालत शुरू की। यहां आने से पूर्व छोटूराम यूपी में अखबार का संपादन किया करते थे। रोहतक आने के बाद उनकी राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी सीधे तौर पर बढ़नी शुरू हुई। यही वह समय था जब उन्होंने आर्य समाज, कांग्रेस और जाट संस्थाओं में अपनी सक्रियता बढ़ानी शुरू कर थी।

किसानों की आर्थिक स्थिति से छोटूराम (Chhotu Ram) पूरी तरह वाकिफ थे और चाहते थे कि किसान आर्थिक रूप से मजबूत होंगे, तभी राजनीतिक तौर पर सक्षम बन पाएंगे। राजनीतिक मजबूती ही सत्ता में भागीदार बनने में अहम भूमिका निभाती है। 1914 के पहले विश्व युद्ध में उन्होंने ग्रामीण स्तर पर लोगों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने पश्चिम बंगाल के बजाय हरियाणा एवं पजाब क्षेत्र के युवाओं को सेना में भर्ती करने पर विशेष फोकस किया हुआ था। जिसमें छोटूराम ने प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी शासन की मदद की थी। दूसरी तरफ एक तपका युवाओं के सेना में भर्ती होने का विरोध भी कर रहा था। छोटूराम अतिवादी मार्ग के बजाए मध्यमार्गी थे।

इन दिनों तक किलवर्ट विदा हो चुके थे और उनकी जगह हारकोर्ट डिप्टी कमीश्नर होकर आ चुके थे। चौधरी छोटूराम (Chhotu Ram) का उनका दिल्ली पढ़ाई के दौरान से ही राब्ता (परिचय) था। इसी कारण हारकोर्ट ने उन्हें रिकरूटिंग कमेटी का सेक्रेटरी नियुक्त किया हुआ था। हालांकि इससे पूर्व वे जिले की सरकारी समितियों के आंदोलन के भी सेक्रेटरी बन चुके थे। हारकोर्ट ने जिले की एंटी करप्शन कमेटी का भी मंत्री उन्हें ही बनाया हुआ था। इस तरह छोटूराम इन तीन कमेटियों के माध्यम से जनता और अफसरशाही के बीच सेतु बनकर काम कर रहे थे। यह उनके व्यक्तित्व की शालीनता और गंभीरता ही थी, जो वो दो विरोधी छोरों के बीच संतुलन बनाए हुए थे।

राजा रामपाल सिंह कालाकंर नरेश की संगति में रहकर उन्होंने संपादन कला का अनुभव प्राप्त कर लिया था। मातनहेल निवासी कन्हैयालाल ने उन्हें जाट गजट अखबार निकालने के लिए 1500रु की आर्थिक मदद की थी। चौ. छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के खिलाफ अनेक लेख लिखे। कोर्ट मे उनके विरुद्ध मुकदमें लड़े व जीते | मोर बचाओ, ‘ठग्गी के बाजार की सैर’, ‘बेचारा जमींदार, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया। दरअसल उस समय में नौजवानों एवं जनता में देशभक्ति की भावना जागृत करने के लिए अनेक जातिगत संस्थाओं ने अहम योगदान दिया था। जातिगत चेतना के माध्यम से एकजुटता का संदेश प्रचारित किया गया और इस अनेकता को फिर एकता से सूत्र में बांधा गया। उस समय में वैश्य सभा, राजपूत सभा गौड सभा, जाट सभा आदि ने अपने-अपने तरीके से जातिगत चेतना के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना को मजबूती प्रदान की। सभी समाजों ने अपने समाज को राजनीतिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए भरसक प्रयास किए।

इसी कड़ी में हरियाणा की जाट सभा के उस समय चौधरी लालचंद अध्यक्ष बने और चौधरी छोटूराम (Chhotu Ram) मंत्री बने थे। इस सभा में हिंदू, मुस्लिम व सिख जाटों के लिए एंट्री थी। रोहतक जिले में पहले-पहल 1916 में कांग्रेस की चर्चा होने लगी थी। इन दिनों छोटूराम रोहतक जिला कांग्रेस के प्रधान और लाला श्यामलाल, जो आगे चलकर पंजाब के प्रसिद्ध कांग्रेसी कहे जाने लगे, मंत्री थे। लाला श्यामलाल सांपला के निवासी थे और छोटूराम गढ़ी के निवासी थे। उन दिनों कांग्रेस में पदाधिकारी बनने पर अंग्रेज नाराज हो जाते थे। इसलिए पदाधिकारी बनने से सब कतराते थे। वोल्स्टर उन दिनों रोहतक के डिप्टी कमिश्नर थे। उन्होंने छोटूराम, लाला श्यामलाल, मियां मुश्ताक हुसैन आदि सताईस प्रमुख जनों को निर्वासन (देश निकाला) की सजा देने के लिए गवर्नर को खत लिखा था। किंतु जिले का एसपी मोरी ने लिखा कि यह कदम उठाने से स्थिति और ज्यादा बिगड़ जाएगी। दरअसल वोल्स्टर ये बखूबी समझ गए थे कि छोटूराम खास रणनीति के तहत सरकारी मशीनरी का प्रयोग अपने खास एजेंडे के तहत कर रहे हैं। छोटूराम उन अंग्रेज भक्तों की तरह बिल्कुल नहीं थे, जिनसे अंग्रेज मनचाहा काम निकलवा सके। इसीलिए वोल्स्टर को खटकने लगे थे। सेना में भर्ती के समय उनके योगदान की वजह से अंग्रेजों ने उन्हें खिताब राय बहादुर, मुआविजा व मुरब्बे देकर चुका दिया था।

डिप्टी कमिश्नर वोल्स्टर ने सरकार के खिलाफ विद्रोहात्मक प्रचार करने के आरोप में छोटूराम (Chhotu Ram) के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 124 ए के अधीन मुकदमा चलाने की आज्ञा प्राप्त कर ली। मुकदमा आगे चलकर खारिज हो गया। 1920 में गांधी जी द्वारा आंदोलन वापसी से रुष्ट होकर कांग्रेस से नाता तोड़ा।

सरकार ने 1927 में राय बहादुर का खिताब दिया और 1923 में युनिनिस्ट पार्टी का गठन किया। सर छोटूराम ने 1923 में जमींदार लीग (यूनियनिस्ट पार्टी) का गठन किया, जो मुस्लिम, हिंदू और सिख कृषकों का एक सांप्रदायिक गठजोड़ था।

1937 में सर छोटूराम (Chhotu Ram) की उपाधि से विभूषित हुए। जमींदार लीग के बैनर तले फजल हुसैन के साथ मिलकर प्रचार-प्रसार किया और वर्ष 1937 में युनिनिस्ट पार्टी पंजाब में जीती और यहां उनका डोगरी बैल्ट से विशेष स्नेह जगजाहिर हुआ। डोगरा क्षेत्र के सर सिकंदर हयात खान को मुख्यमंत्री बनवा खुद राजस्व मंत्री बने।
किसानों के पक्ष में छोटू राम ने इस तरह काम करना शुरू किया, जिसने अंग्रेजी सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया. छोटू राम के संघर्ष से 1938 में ‘साहूकार पंजीकरण एक्ट’ लागू हुआ. इससे फायदा ये हुआ कि इस कानून के बाद कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज़ नहीं दे सकता था और न ही किसानों पर अदालत में मुकदमा कर सकता था. किस्से साहूकारों की मनमानी पर अंकुश लग गया.

9 जनवरी 1945 में 63 साल की उम्र में सर छोटू राम (Chhotu Ram) का लाहौर में निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को रोहतक लाया गया. उनका अंतिम संस्कार उन्हीं के बनाए स्कूल- जाट हीरोज़ मेमोरियल एंग्लो संस्कृत सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हुआ। आज भी इस स्कूल में उनकी समाधि है।

दीनबंधु चौधरी छोटूराम (Chhotu Ram) का सफर सदा ऊंचे पहाड़ों तथा गहरी खाइयों की तरह मुश्किलों से भरा भले ही रहा हो लेकिन उनका लक्ष्य किरदार और अकीदे पर सदा अडिग रहा। इन सभी संघर्षों ने व्यक्तित्व को कसावट देने का काम किया। उनके जीवन का फलसफा यही था कि :
“असफलताओं, मुश्किलों से मत घबरा मेरे दोस्त।
गुच्छे की आखिरी ताली भी ताला खोल सकती है॥”
सर छोटूराम को नैतिक साहस की मिसाल भी माना जाता है। छोटूराम (Chhotu Ram) की स्मृति में भारत के डाक विभाग द्वारा 1995 में जारी एक डाक टिकट जारी किया।

हरिभूमि टीवी के संपादक धर्मेंद्र कंवारी का खास प्रोग्राम