मास्टर रामचंद्र : उर्दू के पहले निबंध लेखक (Master Ramchandra the first essay writer of Urdu)

Master Ramchandra the first essay writer of Urdu

मास्टर रामचंद्र लाल

मास्टर रामचंद्र पर बहुत कम लिखा गया है, हालांकि उन्होंने उर्दू निबंध लेखन के और आधुनिक उर्दू गद्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वास्तव में मास्टर रामचंद्रलाल ही उर्दू के पहले निबंध लेखक थे, लेकिन मास्टर रामचंद्र और उनके उर्दू निबंधों के बारे में ज्ञान की कमी ने गलत धारणा को जन्म दिया है कि सर सैयद अहमद खान उर्दू के पहले निबंध लेखक थे। जैसा कि सईदा जेफर ने अपनी पुस्तक में साबित किया, रामचंद्र ने सर सैयद के मुकाबले उर्दू में लेखन शुरू किया था। मास्टर रामचंद्र ने दिल्ली कॉलेज में गणित और विज्ञान पढ़ाया और छात्रों और प्रशासन के बीच लोकप्रिय थे। चूंकि एक शिक्षक जो स्कूल में पढ़ाता था, उस समय मास्टर कहलाता था, यह शब्द रामचंद्र के नाम का हिस्सा बन गया।

मौलवी अब्दुल हक के अनुसार, रामचंद्र का जन्म 1821 में पानीपत में हुआ था। सिद्दीक उर-रहमान किदवाई ने अपनी पुस्तक मास्टर रामचंद्र में लिखा हैं कि रामचंद्र एक हिंदू कायस्थ परिवार के थे। मास्टर रामचंद्र लाल के पिता राजस्व विभाग में दिल्ली से लगभग 50 मील दूर पानीपत में नायब तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे। रामचंद्र लाल सात भाई बहन थे। वह एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार से संबंध रखते थे उनके पिता ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी के कारण दिल्ली चले गए जब वह 10 साल के थे तब 1831 में उनके पिता राय सुंदरलाल माथुर का देहांत हो गया।

मास्टर रामचंद्र लाल अपनी मां के साथ दिल्ली चले गये जहां उनका मकान था। विषम आर्थिक हालत में भी उनकी माँ ने उन्हें पढ़ाना जारी रखा। 1833 में उन्होंने एक अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दाखिला ले लिया। रामचंद्र लाल की कुछ पढ़ाई निजी स्कूलों में हुई बाद में दिल्ली इंग्लिश स्कूल जो बाद में दिल्ली कॉलेज बन गया में दाखिला ले लिया यहां पर रामचंद्र लाल को कक्षा में प्रथम व द्वितीय आने के कारण छात्रवृत्ति मिलने लगी स्कूल में वह 6 साल रहे। गणित व विज्ञान विषय में वे हमेशा प्रथम आते थे। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्होंने विद्यालय छोड़कर उन्होंने किसी के पास रायटर के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया। मास्टर रामचंद्र की कम उम्र में ही शादी हो गई। परिवार चलाने के लिए और पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हे पानीपत के कुशल राय की बेटी सीता से शादी करनी पड़ी तब वह मात्र 11 साल के थे। शादी के बाद रामचंद्र को पता चला कि उनकी पत्नी सीता गूंगी और बहरी है। कुछ समय के लिए उन्होंने एक नौकरी और भी की, बाद में 1841 में उन्होंने तब के ओरिएंटल कॉलेज दिल्ली कॉलेज में दाखिला ले लिया जहां उन्होंने एक प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लिया और 30रु. महीना की छात्रवृत्ति प्राप्त की जिससे उनकी वित्तीय समस्या खत्म हुई और वह अपनी पढ़ाई में समय देने लगे और अपने मुख्य अध्यापक बुतरस के निर्देशन में यूरोप के वैज्ञानिक कार्यों का उर्दू में अनुवाद करने लगे वह उर्दू में एक शानदार लेखक के रूप में उभरा।

1843 में दिल्ली में एक वनक्युलर ट्रांसलेशन सोसाइटी की स्थापना की गई थी, जिसका कार्य अंग्रेजी से किताबों का स्थानीय भाषा में अनुवाद करना था। फरवरी 1844 में रामचंद्र लाल दिल्ली कॉलेज में यूरोपीय विज्ञान के अध्यापक बन गए. वह दिल्ली कॉलेज में एक विज्ञान शिक्षक के रूप में दृढ़ता से कार्य करने लगे इसमें दो शाखाएं थी जिनमें एक मदरसा शाखा और दूसरी पश्चिमी शिक्षा की शाखा थी। 1844 से 1857 तक रामचंद्र लाल ने यहां साइंस और गणित के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया उन्होंने मेडिसन गणित भाषा विज्ञान आदि की अनेक लाल ने ईसाई धर्म अपना लिया उस समय दिल्ली कॉलेज में बाइबल से संबधित गुप्त कक्षाएं लगनी शुरू हो गई थी जिस कारण बहुत से परिजनों ने ईसाई प्रोपगैंडा के कारण अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया। उनकी पत्रिका का सरकुलेशन भी बहुत कम हो गया था उनको ईसाई धर्म में लाने वाला व्यक्ति जॉन जिनिंग था जो उन दिनों दिल्ली में चैप्लिन था। मास्टर रामचंद्र लाल के साथ-साथ उनके घनिष्ठ मित्र डॉक्टर चमनलाल जो बहादुर शाह जफर की निजी डॉक्टर थे वह भी उनके साथ ईसाई धर्म में शामिल हो गए।

मास्टर रामचंद्र लाल दुनिया के जाने माने गणितज्ञ के रूप में जाने जाने लगे। 1845 में रामचंद्र लाल ने दिल्ली कालेज के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. स्प्रेगर कि सलाह से साइंस समाचार पत्र किरण उस सदान का प्रकाशन शुरू कर दिया कुछ समय बाद उन्होंने दिल्ली की पहली पाक्षिक उर्दू पत्रिका ‘फुआदिन नाजरीन का प्रकाशन शुरू किया इसके साथ ही 1847 में उन्होंने मासिक उर्दू पत्रिका “खैरखवा ए हिंद’ का संचालन किया बाद में इस मासिक पत्रिका का नाम “मुहब-ए-हिंद’ हो गया, यह दोनों पत्र नए नए साइंस गणित के विचारपूर्ण लेखो से भरे होते थे।

इनमें विज्ञान से संबंधित उर्दू के लेख लिखे होते थे जो देश में पहली बार अंग्रेजी से उर्दू में अनुवाद करके लिखें गए थे। यह दोनों पत्रिकाएं 1852 के आसपास बंद कर दी गई। इस प्रकार से हम कह सकते है कि मास्टर रामचंद्र लाल दिल्ली में उर्दू पत्रकारिता के संस्थापको में से एक थे। एक अध्यापक एक संपादक पत्रकार होने के साथ-साथ मास्टर रामचंद्र लाल एक अनुवादक भी थे। उन्होंने विज्ञान की अनेकों किताबों का उर्दू में अनुवाद किया। 1850 में 29 साल कि आयु में रामचंद्र लाल में अपनी प्रसिद्ध किताब। TREATISE ON THE PROBLEMS OF MAXIMA AND MINIMA लिखी और इस पर यूरोप के प्रसिद्ध अगस्तस डी मॉर्गन अंतर्राष्ट्रीय गणितज्ञ ने भूमिका लिखी जो 1859 में दुसरे संस्करण में लंदन से प्रकाशित हुई इस लिए प्रोफेसर रामचंद्र लाल को गणित के लिए विशेष कार्य करने पर 2000 हजार रूपये का पुरस्कार दिया गया और वह पूरे यूरोप में एक प्रसिद्ध गणितज्ञ के रूप में पहचाने जाने लगे। मास्टर रामचंद्र लाल अंग्रेजी से उर्दू और फारसी में एक अच्छे अनुवादक भी थे उन्होंने साधारण भाषा में अनेक अंग्रेजी की किताबों का उर्दू में अनुवाद किया।

‘इलम मूसा लस’ 1844, उसूल जबर मुकाबला 1845, अजय बात ई रोजगार 1847. तज किरात उल कामिलन 1849, कोलायत ओ झंझावत 1850 और 1861 में उन्होंने किताब NEW METHOD OF THE DIFFERENTIAL CALCULUS भी प्रकाशित की। 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान उनका जीवन गंभीर रूप से लुप्तप्राय हो गया क्योंकि उन्हें ईसाई कारणों से पहचाना जाने लगा। इस बारे में रामचंद्र लाल खुद लिखते हैं कि कलकता में मेरा रुझान कुछ कुछ ईसाईयत की ओर हुआ मार्च 1851 में दिल्ली आने के एक साल बाद 11 मई 1852 को मैंने अपने मित्र सर्जन डा. चमन लाल जो कि बादशाह बहादुर शाह जफर के निजी डाक्टर थे के साथ सेंट जेम्स चर्च, दिल्ली में रेव जेनिंग्स द्वारा ईसाई बपतिस्मा लिया था। उनके इस कदम ने बहुत सारे विवादों को उकसाया। बाद में उन्हें दिल्ली से खबरों का अनुवादक नियुक्त किया गया।

जनवरी 1858 में वह रुड़की शहर चले गए, जहां उन्हें प्रतिष्ठित थॉमसन कॉलेज (वर्तमान में आई.आई.टी.) रुड़की में हेडमास्टर की नियुक्ति 250 रूपये महिना पर की पेशकश की गई थी, लेकिन आठ महीने बाद वे दिल्ली वापिस आ गये, जहा वह सितंबर 1859 में दिल्ली जिला स्कूल के हेडमास्टर के रूप काम करने लग गए थे। बाद के वर्षों में, रामचंद्र साहित्यिक रूप मे भी कार्य करने लगे, वह 28 जुलाई 1865 को स्थापित दिल्ली सोसायटी के साथ निकटता से जुड़े गये थे जिनके सदस्यों में उस समय के प्रमुख रूप से मिर्जा गालिब, मुंशी प्यारे लाल अशोब, सर सैयद अहमदखान और नवाब अलाउद्दीन खान अली जैसे कवि और बुद्धिजीवी शामिल थे। 1866 में, उन्होंने खराब स्वास्थ के आधार पर 45 वर्ष कि आयु सेवानिवृत्ति ले ली और पटियाला चले गए, जहां उन्हें तत्कालीन शासक राजा महेंद्र सिंह का अध्यापक नियुक्त किया गया, युवा राजा उनकी बुद्धिमता और प्रशासनिक क्षमता से बहुत अधिक प्रभावित हुए जिस कारण उन्हें पटियाला रियासत के जन कार्य विभाग का निदेशक बनाया गया।

इस अवधि में रामचंद्र लाल ने पटियाला रियासत में महिंद्रा कालेज शुरू करवाया जहां पर यूरोपीय ढंग से विज्ञान कि शिक्षा शुरू कि गई और इसे कलकता विश्वविद्यालय से मान्यता दिलवाई। 1875 में वे अपनी विज्ञान की किताब प्रकाशित करवाने पटियाला से कलकता चले गये महाराजा महेंद्र सिंह के देहांत के बाद रामचंद्र लाल को नए महाराजा राजेंदर सिंह को शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया गया। पटियाला रियासत में उनकी सेवाए 1879 तक रही महाराजा ने उन्हें सम्मान के लिए खिल्लत और जागीर भी प्रदान की। यहां उन्हें जी.बी. मलिक के साथ एक पुस्तक का सह-लेखन करने का समय मिला, जो धर्मशास्त्र के काम पर चर्चा करते थे। उन्हें लकवे का अटैक आ गया और दिल्ली में 11 अगस्त 1880 को 59 वर्ष की उम्र में संपादक, पत्रकार, निबंध लेखक, अनुवादक रामचंद्र लाल की मृत्यु हो गई।

रामचंद्र, एक उर्दू साहित्यकार रूप में काफी प्रसिद्ध थे जो राजनीति और उर्दू साहित्य के संवाहक थे असल में वह उर्दू पत्रकारिता के अग्रज थे, और उनके उर्दू यथार्थवादी लेखन, उनकी लेखन पुस्तिका और इतिहास, भूगोल पर लेख और महत्वपूर्ण राजनीतिक आंकड़ों पर लेखों की एक श्रृंखला भी छपी है इस क्षमता में उन्होंने शिक्षा में अपने पढाई के तरीके से हस्तक्षेप करने की कोशिश की। रामचंद्र लाल ने तीन लेकिन अलग-अलग गतिविधियों में शिक्षाविद के रूप में अपनी भूमिका पूरी की। मास्टर रामचंद्र के काम पर अनेक देशो में काम हुआ है और तो और पाकिस्तान के सबसे बड़े समाचारपत्र ‘डान’ ने भी पिछले वर्ष अगस्त में उन पर एक पूरा पेज का लिटरेरी नोट प्रकाशित किया था। पर ये दुःख की बात है कि हमारे अपने हरियाणा में उनके बारे में शायद ही कोई जानता हो। मास्टर रामचंद्र लाल हरियाणा में जन्म लेने वाले पहले व्यक्ति से जो ‘थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज’ आजकल ‘आईआईटी रुड़की के मुख्याध्यापक बने थे।