धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा है- Albert Einstein

Albert Einstein और quantum theory

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन (Albert Einstein) का कथन है कि ऊर्जा न पैदा की जा सकती है और न ही नष्ट, यह हमेशा थी, है और रहेगी… अतः शिव का भी न जन्म है न मृत्यु।

ऊर्जा को पदार्थ में और पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है, और इस ब्रह्माण्ड में पदार्थ और ऊर्जा का योग सदैव स्थिर ही रहता है। पदार्थ का विखण्डन करते जायें तो ऊर्जा और ऊर्जा को घनीभूत करते जायें तो पदार्थ प्राप्त होता है।

इस सम्बन्ध में क्वान्टम फिजिक्स ( क्वान्टम मेकैनिक्स) में आइंसटीन ने एक सूत्र दिया – – E-mc

E = ऊर्जा, m = पदार्थ की मात्रा, c = प्रकाश का वेग = 3,00,000/- कि०मी० प्रतिसेकेण्ड )

धर्म के बिना विज्ञान लँगड़ा और विज्ञान के बिना धर्म अन्धा हैAlbert Einstein

इस क्वान्टम फिजिक्स या क्वान्टम मेकैनिक्स (quantum theory) के जन्मदाता के रूप में मैक्स प्लैंक, वरनर ही जनबर्ग और इरविन स्क्रिोडिंगर का नाम आता है, किन्तु इसे (quantum theory) आगे बढ़ाने का श्रेय अलबर्ट आइन्सटीन को ही जाता है। वास्तव में क्वान्टम फिजिक्स में साइंस के वे नियम आते हैं जो फोटॉन, इलेक्ट्रॉन आदि के अध्ययन के लिये हैं।

(quantum theory) के अनुसार इस ब्रह्माण्ड में हमारी क्या स्थिति है। अध्यात्म और हमारे विचार, हमारी भावनायें, सफलतायें या असफलतायें सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, किन्तु इसके पूर्व, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। क्वान्टम फिजिक्स कहती है, सबसे पहले प्रकाश उत्पन्न हुआ, जो शुद्ध रूप से ऊर्जा है। इन प्रकाश तरंगों से प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन का निर्माण हुआ, फिर इनसे परमाणु, उससे अणु और फिर इन अणुओं के संयोग से दूसरी वस्तुएँ पैदा हुईं।

हमारी जिंदगी में जो कुछ भी होता है उसमें क्वांटम फिजिक्स का कहीं ना कहीं अहम् रोल होता है। जैस मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा और एल.ई.डी ( LED ) क्वांटम फिजिक्स की ही देन है। टेलीकम्यूनिकेशन को आसान बनाने में और आज की जरूरत बन चुके GPS ” ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम ” को भी क्वांटम फिजिक्स द्वारा बनाया गया है।

साइंस की यह विधा दृश्य और अदृश्य दोनों के अध्ययन का प्रयास है…. यह कहती है कि यह ब्रह्माण्ड, ऊर्जा का एक विशाल क्षेत्र है, जिसमें कहीं पर जब ऊर्जा की तरंगें अपनी स्वाभाविक गति की अपेक्षा बहुत धीमी गति से चलती हैं तो भौतिक वस्तुओं का निर्माण होता है।

हमारा शरीर कोशिकाओं से बना हुआ है। कोशिकाएँ अणुओं से बनी हुई हैं। अतः ऊपर दिये हुए तर्कों से यह प्रमाणित होता है कि हम शुद्ध रूप से प्रकाश ऊर्जा की एक सुन्दर और बुद्धियुक्त कृति हैं। ऊर्जा सतत् परिवर्तित होती रहती है, हम इस परिवर्तन को अपने मन मष्तिष्क के द्वारा नियंत्रित करते हैं।

क्वान्टम फिजिक्स (quantum theory) यह भी बताती है कि समय एक भ्रान्ति है और मृत्यु के बाद भी जीवन है… यह निश्चित रूप से चेतना और अध्यात्म का विज्ञान है। इसका एक मूलभूत निष्कर्ष यह भी है कि यह प्रेक्षक (देखने वाला) ही है जो सब कुछ बताता है। पदार्थ एक ही क्षण में सब कुछ है; यदि उसे देखने वाला है और कुछ भी नहीं है, यदि उसे कोई देखने वाला न हो।

ऊर्जा सभी वस्तुओं के निर्माण का मूल है और प्रेक्षक की अपेक्षायें ही इस के द्वारा बनने वाली वस्तु का कारण हैं। इसका अर्थ यह है कि जो दिखाई देता है वह सृष्टि के प्रारम्भ से नहीं है। यह ऊर्जा, दृष्टि और अपेक्षाओं के अनुरूप ही पदार्थ का निर्माण करती है, ये दृष्टि और अपेक्षाएँ हमारी हों या ईश्वर की।
भौतिक शास्त्री सर जेम्स जीन ने लिखा है कि ज्ञान की धारा विश्व को एक भौतिक यन्त्र के स्थान पर एक महान विचार मानने की ओर अग्रसर हो रही है। व्यक्ति का मन (mind) अब यूँ ही मानसिक अवस्था (mood) नहीं अपितु वह निर्देश देता और सृजन करता है। (Albert Einstein)
चेतना और मन मिलकर सृष्टि का सृजन करते हैं। समय और अन्तरिक्ष (space) प्रकाश से उत्पन्न होते हैं। प्रकाश की गति से चलने वाले के लिये न समय है न अन्तरिक्ष। हम जो समय की गति से नहीं चल सकते हैं, उनके लिये ही इस समय और अन्तरिक्ष का अस्तित्व है।
चेतना का प्रकाश परिष्कृत और सदैव सुखद प्रकाश है। सनातन धर्म में चेतना को मनुष्य को भीतर से प्रकाशित करने वाला बताया गया। हमारे इस शरीर के साथ ही एक सूक्ष्म शरीर भी है, जो ध्वनि, अतिसूक्ष्म प्रकाश और तरंगों से बना हुआ है। ‘ओम’ की तरंगें इस विश्व के सृजन में प्रथम सृजन हैं और इसके सृजन का मूल हैं। ॐ केवल तरंग ही नहीं, यह अति सूक्ष्म प्रकाश और ध्वनि भी है… यह त्रिआयामी (तरंग, प्रकाश और ध्वनि) है। अन्तरिक्ष, चेतना के सूक्ष्म प्रकाश, जो भौतिक नेत्रों से नहीं दिखाई देता और ॐ से भरा हुआ है। (Albert Einstein)

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प्रश्न उठता है कि क्या क्वान्टम फिजिक्स और अध्यात्म में कोई सम्बन्ध है। (Albert Einstein)

हमारे विचार पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक शक्तिशाली ऊर्जा तरंगें हैं। विचारों की गति प्रकाश से भी तेज हैं और हम समझ पायें इससे पूर्व ही हमारा मष्तिष्क क्रियाशील हो जाता है… जैसे हम यदि कुछ गर्म छू लें तो कुछ समझने से पूर्व ही हमारा हाथ वहाँ से हट जाता है।

हमारे विचारों में नकारने का भाव सबसे अधिक शक्तिशाली होता है. अन्यथा हम भावनाओं में बहकर कुछ भी करने लग सकते हैं। नोबल पुरस्कार विजेता भौतिक वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि यह भौतिक संसार ऊर्जा का एक बड़ा समुद्र है, जिसमें बराबर उथल-पुथल बनी रहती है। कोई भी आपमें उस ‘आप’ को नहीं ढूँढ़ सकता जो शरीर से इतर है, क्योंकि उसका कोई भौतिक रूप नहीं है, किन्तु यही ‘आप’ विचारों और भावनाओं के अनुरूप लोगों, घटनाओं और परिस्थितियों को आकर्षित करता है। एक मूलभूत बात जो क्वान्टम फिजिक्स बतलाती है, वह यह कि यह प्रेक्षक (देखने वाला) ही है जो वास्तव में किसी वस्तु को जन्म देता है। आज भौतिक शास्त्री यह मानने के लिये बाध्य हैं कि यह विश्व एक मानसिक संरचना है। (Albert Einstein)

आइये अब इसके कुछ और पहलुओं पर विचार करते हैं और एक उदाहरण से शुरू करते हैं। एक बड़ी फैक्ट्री का मालिक एक दिन फैक्ट्री से जाते समय गलती से अपनी सिगरेट बुझाना भूल गया और फैक्ट्री में आग लग जाने से उसका एक सौ करोड़ का नुकसान हो गया। यह एक बहुत छोटी घटना का बहुत बड़ा परिणाम था। इतिहास ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं से भरा पड़ा है। जिनके बड़े परिणाम सामने आये। इसे Butterfly Theory कहते हैं जो कहती है कि एक तितली के पंखों से तूफान भी पैदा हो सकता है। (Albert Einstein)

आइये एक और उदाहरण लेते हैं। मान लीजिये एक व्यक्ति कार चला रहा है और स्पीड ब्रेकर आने पर उसे कार की गति धीमी करनी पड़ेगी और स्पीड ब्रेकर पार करने के बाद वापस उसी गति में आने के लिये उसे एक्सीलेटर दबाकर कार को ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ानी पड़ेगी। अब आइये कार के स्थान पर प्रकाश को लेते हैं जो तीन लाख किमी प्रति सेकेण्ड की गति से चलता है। यह प्रकाश जब किसी पारदर्शी माध्यम जैसे काँच या पानी से होकर गुजरता है तो इस माध्यम के अन्दर उसकी गति कम हो जाती है किन्तु इससे बाहर ही उसकी गति पुनः पूर्ववत हो जाती है। तो उसे पुनः उसी गति में आने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है। यह एक बड़ा और अभी तक अनुत्तरित प्रश्न है। उसे यह ऊर्जा देने वाली शक्ति लौकिक है या अलौकिक। (Albert Einstein)

विज्ञान ने इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के लिये महाविस्फोट के सिद्धान्त (Big Bang Theory) को स्थापित किया अर्थात एक महाविस्फोट से इस संसार की रचना हुयी और इसके पूर्व कहीं कुछ भी नहीं था। इस महाविस्फोट के पीछे भी उसी प्रकार कोई कारण होना चाहिये जिस प्रकार हर कार्य के पीछे कोई कारण होता है और वह भौतिक विज्ञान के नियमों के अनुरूप भी होना चाहिए किन्तु इस महाविस्फोट के पूर्व जो शून्य था उसके सामने भौतिक विज्ञान के सभी नियम बेकार हो जाते हैं। तो फिर शून्य से असंख्य आकाशगंगाओं वाला यह संसार कैसा बना यह प्रश्न तो अनुत्तरित ही रह गया।

आइये इस क्वान्टम फिजिक्स के एक और आश्चर्य की ओर चलते हैं। किसी प्रयोग से यदि दो एकदम विपरीत परिणाम मिलें तो दोनों में से एक ही सही होगा किन्तु क्वाण्टम फिजिक्स की दुनिया में दोनों परिणाम सही हो सकते है। यह एक प्रयोग द्वारा सिद्ध किया गया।

हम इस प्रयोग के विवरण में नहीं जाते, किन्तु इस प्रयोग में यह पाया गया कि प्रकाश जिन फोटान कणों से मिलकर बना है। वे जब उन्हें कोई देख नहीं रहा होता है तब तरंगों की तरह और जब सेन्सर्स द्वारा उन्हें देखा जा रहा होता है तब दानों की तरह अलग तरह से व्यवहार करते हैं। उनका व्यवहार हमारी सोच से प्रभावित होता है। उन्हें पता चल जाता है कि कोई उन्हें देख रहा है। एक ही फोटान एक ही समय में सब जगह हो सकता है पर जब हम उसे देखने का फैसला करते हैं तो वह उसी जगह पर होता है जहाँ हम उसे देखना चाहते हैं और वैसे ही व्यवहार करता है जैसा हम सोचते हैं। (Albert Einstein)

यह हमें एक बड़े निष्कर्ष की ओर ले चलता है क्या भारतीय मनीषा ईश्वर और देवी-देवताओं की जिस अवधारणा को लेकर चली है यह उसकी वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। ईश्वर को हम मानते हैं तो वह है, नहीं मानते हैं तो नहीं है। जब चाहें तो वह सामने है, नहीं तो कहीं नहीं है। हम अपने विचारों से उसे जो रूप चाहें दे सकते हैं, वह ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा या कुछ भी और रूप ले सकता है। (Albert Einstein)

सच तो यह है कि क्वान्टम फिजिक्स चेतना और अध्यात्मिकता का ही विज्ञान है, जो यह बताता है हम संसार की सभी वस्तुओं से जुड़े हुए हैं और समय सहित यह संसार वास्तव में एक भ्रम ही है।

यह बताता है कि इस ब्रह्माण्ड में हर दिखाई देने वाली या न दिखाई देने वाली वस्तु क्यों, कैसे और क्या है। पारम्परिक विज्ञान जहाँ हमें, जीवन को और संसार में प्रत्येक वस्तु को एक भौतिक वस्तु की भाँति देखता है, वहीं क्वान्टम भौतिकी बताती है कि हर वस्तु, ऊर्जा या प्रकाश मात्र है। हम उन्हें समझते हों, पर वह सब एक ही है।

यह विज्ञान ईश्वर को नकारता नहीं है… यह कहता है ईश्वर ने कहा प्रकाश हो और प्रकाश हुआ। यह विज्ञान, प्रचलित भौतिक विज्ञान की अपेक्षा अधिक गहरी, पूर्ण, बहुत रोमांचक और अधिक समर्थ समझ प्रदान करता है।

यह सोच से सर्वांगीण सोच की ओर ले जाता है। पारम्परिक विज्ञान, चेतना को परिभाषित नहीं करता वह अमूर्त की बात ही नहीं करता, न उसे मान्यता देता है, जबकि यह उस अमूर्त की खोज है जो हर पदार्थ का मूलभूत कारण है।

हमारा यह हर पल बदलता विश्व, उस उद्गम का प्रत्यक्षीकरण मात्र है, जो समय से परे और हर पल बदलता रहता है और यह उद्गम हमारे वैदिक ग्रन्थों में बताई गई ब्रह्म की अवधारणा के बहुत निकट है।

यह विज्ञान बताता है कि जागरूकता, जो हर जीवित प्राणी में होती है, वही चेतना का मूल है, जिसके द्वारा हम वास्तविकताओं, अनुभवों और भावनाओं को जानते हैं। चेतना हर उस वस्तु से भिन्न है, जिसे हम जानते हैं; यह जानने का साधन भी है और जो कुछ जानना है वह भी यही है।

इसके अनुसार ईश्वर, सृजन और सर्जक दोनों ही है। सृजन और सृजनकर्ता की पहली झलक भारताय मनीषियों की चेतना में सबसे पहले आयी और तब उन्होंने कहा ‘अहं ब्रह्मास्मि, तत्त्वमसि’ अर्थात मैं और तुम दोनों उस ब्रह्म का ही भाग हैं। यह ब्रह्म हर समय सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, उसे बनाये रखता और चलाता है; यह विश्वव्यापी चेतना है और यही ईश्वर है।

कोई मछली, जो समुद्र में ही उत्पन्न हुई हो, उसी में रहती हो और कभी उससे अलग न हुई हो… वह यदि समुद्र ढूँढ़ने निकले तो कभी भी उसे ढूँढ नहीं पायेगी, किन्तु हाँ, वह यदि कुछ पल ठहरकर उसे अनुभव करने का प्रयास करे तो उसके लिये एक सम्भावना इस समुद्र को जानने की अवश्य बनती है. वैसी ही समाधि की स्थिति में पहुँचे व्यक्ति द्वारा ईश्वर के अनुभव की भी होती है और भारतीय मनीषियों ने यही किया।

सच तो यह है कि विज्ञान और ईश्वर में कोई टकराव नहीं है। अणुओं की बारे बताने वाले महान वैज्ञानिक नील्स बोहर भी ईश्वर को मानते थे। पॉल्स डेविस नामक वैज्ञानिक ने तो ब्रह्माण्ड को ईश्वर के सृजन के रूप में स्वीकार किया है और उन्होंने तो ‘माइण्ड ऑफ गॉड’ नामक पुस्तक भी लिखी है। वैज्ञानिक कार्ल्स सैगा ने ‘द कॉस्मिक डॉन्स ऑफ शिव’ नाम की बेस्ट सेलर

पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और शिव का पूरा आलेखन किया है। रॉबर्ट ओपेन हाइमर अमेरिका के अणुबम बनाने वाले न्यूक्लियर प्रोजेक्ट के सूत्रधार थे और अणुबम के सफल परीक्षण के बाद उन्होंने उसी जगह पर श्रीमद्भगवद्गीता के दो श्लोक पढ़े और हिक्स बोसॉन (Hicks Boson) या गॉड पार्टिकल (God Particle) पर कार्य करने वाले वैज्ञानिकों का जहाँ काफिला मौजूद है वह स्थान स्विटजरलैण्ड के जेनेवा के पास पार्टिकल एक्सीलेटर (Particle Accelletor ) के नाम से प्रसिद्ध है जिसे सर्न (Cern) भी कहा जाता है। इस प्रयोगशाला के प्रवेश द्वार पर दो मीटर ऊँची नटराज की प्रतिमा स्थापित है।

क्वान्टम फिजिक्स पर कई पुस्तकों में से एक (Time Loops and Space Twists) भी है। यह एक बहुत बड़ा और गहरा विषय है, जिस पर यहाँ पूरी तरह चर्चा करना सम्भव नहीं है, किन्तु इतना सब कुछ कहने के बाद शिव हैं या नहीं, यह मैं आपके विवेक पर छोड़ता हूँ।