सिनेमा : चमत्कार, कला और कारोबार (Cinema)

Cinema: Miracle, Art and Business

अक्सर सिनेमा (Cinema) की शुरूआत की जब भी बात होती है तो लुमिएर बंधु से ही शुरू की जाती है। जबकि कैलिफोर्निया के गवर्नर ली लैंड स्टैनफोर्ड ने 1872 में उन्होंने सेन फ्रांसिस्को के फोटोग्राफर एडवर्ड मेब्रिज की मदद से भागते हुए घोड़ों की तस्वीर खीचंवाई थी। तस्वीर धुंधली आई थी। अपनी जिद्द और जुनून से मेब्रिज ने पांच साल बाद एक युवा की मदद से 24 कैमरे एक साथ फिट करके सिनेमॉटाग्राफ की नींव रखी। हर कैमरा घोड़े के हर स्टैप को कैप्चर कर रहा था। इस तरह वो उस क्षण को पकड़ पाए, जिसकी कल्पना स्टैनफोर्ड ने की थी। आखिरकार घोड़े के चारों पांव हवा में तैर रहे थे और मेब्रिज ने इसे पेटेंट भी करवाया था।

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इस तरह गतिशील चीजों की गति की छवियों की एक श्रृंख्ला में कैप्चर करने का रास्ता खुल गया। इस कड़ी से अगली कड़ी को जोड़ा एटीने जूल्स मैरी ने, इन्होंने क्रोनोफोटोग्राफिक नामक उपकरण बनाया, जिसकी मदद से बंदूक की तरह फिल्म को रोल घूमता था और एक के बाद एक तस्वीरें खींचती चली जाती थी।
दूसरी तरफ इंग्लैंड के इंजीनियर विलियम डिकसन ने काइनेटोस्कोप की खोज मशहूर वैज्ञानिक एवं उद्योगपति य़ॉमस अल्वा एडीसन की कंपनी के लिए की। काइनेटोस्कोप दरअसल बुद्धु बक्सा का बाप था, जिसमें आंख लगाकर गेखने पर तेजी से बदलती तस्वीरों को देखा जा सकता था, जोकि वास्तविक गति का भ्रम पैदा करता था। इन सभी अविष्कारों से इंटरमिटेंट मोशन मैकेनिज्म की थ्योरी (यानी एक एक्शन की हजारों फ्रेम में अंकित करना एवं तेजी से बदलते प्रेम के जरिए एक पूरे एक्शन को दोबारा दिखाना) विकसित हुई, जिसने सिनेमा की दुनिया को आबाद किया।
28 दिसंबर 1895 को पेरिस में लोग समय के गतिशील हिस्से को अपनी आंखों के सामने घटित होते देख हतप्रभ थे, कल्पनाओं को यथार्थ में दोबारा घटते देखना किसी चमत्कार से कम नहीं था। स्मृतियों का हिस्सा बनते यथार्थ के कतरे-कतरे को चुगकर पिरोना यकीं से परे था। पर लुनिएर बंधु ने इसे कर दिखाया था। वो आठ फिल्में जिनमें बगीचे में पानी देता माली, नाश्ता करता हुआ बच्चा, स्टेशन पर आती हुई रेलगाड़ी, फैक्टरी से बाहर निकलते मजदूर। चेहरों के पल-पल बदलते भावों को जीवंत देखना रौंगटे खड़े कर देने वाला क्षण था वह। यह एक चमात्कारिक कला का आगाज था। जिसे लंबा सफर तय करना था।
यूं तो पश्चिम में अविष्कार जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड, इटली आदि सभी जगह चल रहे थे, पर श्रेय पेरिस के नाम लिखा था।

अविष्कार और कारोबार दोनों पर फोकस (Cinema)


लुमिएर बंधु जितना फोकस अविष्कार पर कर रहे थे, उतना ही कारोबार पर भी कर रहे थे। पहले प्रदर्शन के बाद उन्होंने सिनेमॉटोग्राफ नामक 25 उपकरण तैड़भैड़ बना डाले। सिनेमॉटोग्राफ दरअसल तीन काम एक साथ करता था-गतिशील दृश्यों को एक साथ अंकित करना, उनकी प्रोसेसिंग करना और बाद में उन्हें बड़े पर्दे पर प्रोजेक्ट करना। इसी दौरान टॉमस अल्वा एडीसन काइनेटोस्कोप पर काम कर रहे थे।
“गौर करें तो इन आरंभिक कोशिशों में बाद के पूरे पश्चिमी सिनेमा के इतिहास को समझने की कुंजी छिपी है। इन्हीं कोशिशों के बीज थे जिसके चलते हॉलीवुड ने मनोरंजन का एक ऐसा साम्राज्य खड़ा किया, जिसने आने वाले वक्त में सारी दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया। सिनेमा के दर्शक का मनोविज्ञान लुमिएर ब्रदर्स समझ चुके थे। उन्हें यह आभास हो गया था कि सिनेमाटोग्राफी की मदद से कौतुहल का एक असीम संसार रचा जा सकता है। लिहाजा उन्होंने अपनी अगली रणनीति में तेजी से अपनी फिल्मों के प्रदर्शन किए जाने को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी। उनकी इन्हीं कोशिशों में आने वाले वक्त में फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की नींव पड़ी। एडीसन का काइनेटोस्कोप जब सफल नहीं हो सका तो उन्होंने झटपट लुभिएर ब्रदर्स से मिलता-जुलता एक उपकरण बाजार में उतार दिया। पहली फिल्म प्रदर्शित होने के ठीक चार महीने बाद 23 अप्रैल 1896 को न्यूयार्क में प्रोजेक्टर की मदद से फिल्म का प्रदर्शन हुआ। इंगलैंड और इटली में भी इसी तरह के उपकरणों पर काम चल रहा था। ऐसी स्थिति में लुमिएर ब्रदर्स के पास अपने अविष्कार को खो जाने से बचाने का एक ही उपाय था- तेजी से बाजार पर कब्जा करना.

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और इस तरह लुमिएर बंधु इतिहास के सबसे कुशल बिजनेस मैनेजर बनकर उभरे। उन्होंने एक साथ कई काम किए। पेरिस में पहले प्रदर्शन की सफलता के बाद फटाफट 25 और उपकरण तैयार करना दरअसल उनकी इसी व्यावसायिक सूझबूझ का नमूना था। उन्हें न सिर्फ इस बात का अंदाजा था कि यह तकनीकी भविष्य में एक बड़े उद्योग का रूप ले सकती है, बल्कि उन्होंने यह भी भांप लिया था कि अगर वे चौकस नहीं रहे तो उन्हें बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। उनकी सतर्कता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर 1895 में पहली फिल्म प्रदर्शित करने से पहले ही उन्होंने अपने पास छोटी-छोटी करीब 50 फिल्में शूट करके रख ली थीं। तैयारी यह थी कि पहली फिल्म रिलीज होने के तुरंत बाद वे बिना किसी अतिरिक्त दबाव के एक के बाद एक नई फिल्में लोगों को दिखा सकें और सारी दुनिया में उसके प्रदर्शन कर सकें। और वही हुआ भी ।” (दिनेश श्रीनेत, पश्चिम और सिनेमा, पृ. 8, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण-2012)
इस तरह कह सकते हैं कि सिनेमा का जन्म जिज्ञासा और उत्सुकता के कारण हुआ। बेचैन मन में उठने वाले सवालों का जवाब था सिनेमा।
काइनेटोस्कोप और सिनेमॉटोग्राफ (Cinema)
काइनेटोस्कोप के अविष्कार के साथ उनकी खोज ने कैमरे को एक सैकेंड में चालीस फ्रेम अंकित करने की कुव्वत हासिल कर ली थी। जिसके फलस्वरूप एक लंबी फिल्म पट्टी की मदद से काइनेटोस्कोप पर चलती-फिरती तस्वीरें दिखाई जाने लगी। वह दरवाजे के की होल से देखना पड़ता था। लुनिएर ब्रदर्स ने प्रोजेक्टर की मदद से उसे बड़े परदे पर प्रक्षेपण करना शुरू कर दिया। यहां से काइनेटोस्कोप के एकल या निजी अनुभव की तुलना में सामूहिक अनुभव की शुरूआत हुई। लुमिएर बंधु की विस्तारवादी रणनीति के आगे एडिसन का काइनेटोस्कोप टिक नहीं पाया।


कल रात में छायाओं के साम्राज्य में था… और मैंने लुमिएर के सिनेमेटोग्राफर द्वारा प्रदर्शित चलचित्र देखे। इन बिंवों का असाधारण प्रभाव विलक्षण, जटिल और बहुआयामी है। मुझे नहीं लगता कि मैं इस प्रभाव के सभी पहलुओं की स्पष्ट व्याख्या करने में समर्थ हो पाऊंगा।

मैक्सिम गोर्की, लुमिएर बंधुओं की रूस में प्रदर्शित फिल्म पर अपनी एक रिपोर्ट में

एक शक्तिशाली लालटेन की मदद से वास्तविक जीवन से मिलते-जुलते बहुत से दृश्य पर्दे पर दिखाए गए। जिस प्रकार प्रत्येक पात्र की भाव-भंगिमाएं अत्यंत स्पष्टता से प्रस्तुत की जा सकीं, उससे पता चलता है कि छायांकन की कला और जादुई लालटेन का गठजोड़ किस उन्नत स्थिति तक पहुंच चुका है।

टाइम्स आफ इंडिया वाटसन होटल में लुमिएर बंधुओं के प्रदर्शन पर रिपोर्ट